सिरसा से रोहतक एक ट्रक में सामान लादकर आये थे। पिताजी की रोहतक के एग्रीकल्चर फार्म में बतौर फार्म मैनेजर के नियुक्ति हुई थी। फादर को सुनने भी काफी कम लग गया था और शाम को नींद भी आनी कम हो गई थी।
सरदार प्रीतम बेलदार हमारे साथ सिरसा से आया था हमें छोड़ने के लिए।
उसी दिन शकुंतला बहिन जी भी घर आ गयी थी मिलने के लिए।
मैनेजर साहब की कोठी के नाम से हमारे मकान को जाना जाता था।
यह यह हमारे माकन की लोकेशन है
2 पीपल के पेड़ बड़ी यादगार हैं जो आज भी इतने सालों के बाद भी उनमें से एक वहां पर है।
एक बैठक ,एक रसोई , बीच में सहन दाई तरफ दो कमरे और पूर्व की लाइन में
बाथरूम और एक स्टोर यह था मकान वहां पर।
जाट स्कूल बिलकुल पास ही था वहां प्राइमरी स्कूल में दाखिला लिया। चौधरी फतेह सिंह दलाल हमारे अध्यापक थे। जब तीसरी में हुए तो सूरजमुखी बहिन जी भी आ गयी थी।
तख्ती पर सुलेख लिखने का मुकाबला होता था और बहुत बार मैं क्लास में प्रथम आता था। जहाँ अब किशोरी कॉलेज बनाहै वहां लड़कों का हॉस्टल था और अध्यापकों के रहने के मकान भी थे।
जेबीटी ट्रेनिंग स्कूल में ही हमारा प्राइमरी स्कूल था। हॉस्टल के साथ एक बड़ा रसोईघर था जहां छात्र भोजन करते थे। वहीँ पर एक हलवाई की दुकान थी जो मुस्सदी की दुकान के नाम से मशहूर थी। हॉकी का ग्राउंड , फुटबॉल के दो ग्राउंड और वोली बाल और बास्केट बॉल के ग्राउंड और कबड्डी का ग्राउंड थे। एक अस्पताल भी था जिसमें एक डाक्टर था और एक पट्टी करने वाला घीस्सा राम जिसकी एक आँख ख़राब थी। सी आर कॉलेज और जाट कॉलेज अलग अलग से थे।
पांचवीं तक प्राइमरी स्कूल में पढाई की और छटी क्लास में हाई स्कूल में आ गए।
No comments:
Post a Comment