विज्ञानं के सामाजिक सरोकार : विचार के लिए कुछ बिंदु, कुछ शब्द और कुछ विराम
डॉ राणा प्रताप सिंह
प्रोफ़ेसर एवं सन्कायाध्यक्ष
पर्यावरन विज्ञानं संकाय
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर
केन्द्रीय विश्व विद्यालय
लखनऊ --२५ --
परिभाषाएं अनगढ़ चीजों को एक शक्ल देती हैं , पर जरूरी नहीं कि चीजों की असली शक्ल वही हो , जो किसी ने गढ़ रखी है , और तमाम परिचित साधनों से ,उसे लोगों के बीच प्रचलित कर रखी हो
सदियों से जबसे मनुष्य ने स्वरूप लिया ,या उसके पहले भी ,जबसे प्रकृति और जीव ने स्वरूप लिया , नए नए अनुभव एवं उससे उपजे ज्ञान की खोज अनवरत जारी है
अनुभवों को साँझा करने के लिए पहले संकेत इजाद हुए ,फिर शब्द और उसी कर्म में भाषा
अनेक भाषाएँ
असंख्य शब्द और संकेत
फिर उनको वर्गीकृत एवं व्यवस्थित कर उनका संग्रहण , रेखांकन ,लेखन ,वाचन, गायन आदि शुरू हुआ, और इस तरह से विभिन्न समाजों के बीच इन अनुभवों एवं व्यवस्थित विचारों का आदान प्रदान हुआ
बहस मुसाहिबें हुईं
विवेचनाएँ हुईं
आलोचनाएँ हुईं और अधिक स्पष्ट एवं टिकाऊ लगी जानकारियों के आधार पर सिद्धiत बनें
उन सिधान्तों का उपयोग कर तकनीकें विकसित हुईं
यह सिलसिला कभी रूका नहीं
अनवरत चलता रहा
रूकेगा भी नहीं
रूक गया तो ज्ञान का चक्का थम जायेगा और मनुष्य कि दुनिया ठहर जायेगी
एक यात्रा में विराम आना ठीक है
हम थोड़ा ठहर कर पीछे मुड़कर देखते है ,थोड़ा सुस्ताते हैं
आगे कि यात्रा के लिए नई उर्जा संचित करते हैं
परंतू ठहराव आना ठीक नहीं
ठहराव लम्बा या अनिश्त्कालीन हो सकता है
यात्रा रूक सकती है
ज्ञान विज्ञानं कि खोज कि प्रक्रिया को हम एक चर्चित कहानी के माध्यम से अधिक बेहतर तरीके से समझ सकते हैं
चार आंधे लोग एक हाथी के करीब गये
सबने उसे छोकर देखा और उसके आकर और उसकी पहचान का अंदाजा लगाया
एक का हाथ पूंछ तक गया और उसने उसे रस्सी कहा
दूसरे का हाथ पैर तक गया और उसने उसे खम्बा कहा
तीसरे ने इसी तरह उसे दीवार और चौथे ने पंखा कहा
चार से अधिक होते तो जने और क्या क्या कहते
परन्तु एक ही चीज रस्सी ,खम्बा, दीवार और पंखा तो नहीं हो सकती
तो झगडा हुआ
सबके अनुभव खरे जो थे
थोड़ा गुस्सा कम होने पर विचार हुआ
आपस में विश्वास हो एवं विवेचनापूर्ण विचार हो तो हम सही चीजों तक पहुन्व्ह्ते ही हैं
उन्होंने भी बार बार इस अनुभव को दोहराने कि प्रक्रिया शुरू की
और फिर हैरान थे , सबके अनुभव सच थे
उन्होंने सभी अनुभवों को साझी विवेचना कर उस चीज का ,जिसे वे देख नहीं सकते थे ,एक स्वरूप बनाया
वह हाथी जैसा बना कि नहीं ,पता नहीं
पर इतना जरूर तय हुआ कि इस जानवर के मोटे मोटे पैर हैं , बड़ी पीठ है ,लम्बी पूंछ है और बड़े बड़े कान हैं
इस तरह सही पहचान कि दिशा में वे कदम दर कदम आगे बढे
ज्ञान कि खोज ऐसे ही होती है
विज्ञानं कि भी
हम कदम दर कदम आगे बढ़ते हैं
अनुभव करते हैं
विभिन्न तरह के प्रयोग करते हैं
बाकी स्थितियां स्थिर रखकर एक एक को बदलते हैं
उसका असर देखते हैं
फिर उनका समवेत आंकलन करते हैं
समीक्षा करते हैं , और विवेचना करते हैं
कर्म चलता रहता है
ज्ञान विज्ञानं आगे बढ़ता रहता है
ज्ञान और इसी के एक स्वरूप विज्ञानं का उपयोग कैसे हो ? किसके लिए हो और किसके खिलाफ हो ? यह कौन तय करता है ? क्या इसे खोज प्रक्रिया से हासिल करने वाले लोग ? मोटे तौर पर इसके उपयोग को समकालीन सत्ताएं जो पूरी व्यवस्था पर काबिज होती हैं , वे तय करती हैं , कि किस ज्ञान-विज्ञानं का उपयोग किसके लिए हो ,और किसके लिए न हों
वे ही तय करती हैं कि इसका प्रयोग किसके खिलाफ हो
और इसी तरह कि आवश्यकता एवं स्वार्थ आधारित उपयोगों के मद्दे नजर इसकी तकनिकी खोजी जाती है
चूंकि इस समय सत्ता के केंद्र में सिर्फ शाषक और प्रशासक ही नहीं ,बल्कि बाजार के नियंत्रक भी महतवपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं , इसलिए ज्ञान विज्ञानं को इन सबका स्वार्थ सिद्ध करना होता है
यह जनता का भी स्वार्थ सिद्ध कर सकती है , यदि सत्ता केंद्र में जनता हो
एक वास्तविक 'लोकतंत्र ' या 'जनतंत्र ' हो
सत्ता के केंद्र के विमर्श में केन्द्रीय भूमिका में व्यक्ति या व्यक्तियों का गिरोह ना होकर समूचा मनुष्य समाज हो , समूची प्रकृति हो , पृथ्वी और आकाश हो, हवा और पानी हो, पृथ्वी से भी इत्तर सम्पूर्ण ब्रह्मांड हो
'व्रहद मनुष्य समाज कि सत्ता हो
ज्ञान और विज्ञानं पर उसका समुचित नियंत्रण हो
जिस तरह ज्ञान और विज्ञानं का संघर्ष और उसकी विकास यात्रा जारी है
उसी तरह इस 'व्रहद मनुष्य समाज ' के अधिकार एवं नियंत्रण का भी संघर्ष एवं विकास यात्रा अनवरत जारी है
इसे देख पाने कि नजर विकशित करने कि जरूरत है
हमारे इर्द गिर्द कई समकालीन मुद्दे हैं
अलग अलग समूहों के, अलग अलग परिस्थितियों में राह रहे लोगों के, अलग अलग भौगोलिक एवं सामाजिक स्थितियों में राह रहे लोगों के अलग अलग मुद्दे हो सकते हैं
पर सबके केंद्र में स्वस्थ प्रकृति , स्वस्थ जीवन , सबके लिए संसाधनों का टिकाऊ दोहन , सबके लिए स्वास्थ्य , सबके लिए भोजन , वस्त्र , मकान, दवायें , सम्मान , एवं एक मुठ्ठी भर सुख कि दरकार है
सबको जीने का एकसा अधिकार है
न सिर्फ मनुष्यों को, अन्य जीवों को भी
पृथ्वी के सभी अवयवों का पृथ्वी में हिस्सा है , ठीक वैसे ही जैसे माँ बाप कि संपत्ति में सभी संतानों का एकसा अधिकार होता है
तमाम विरोधाभाषों एवं स्वार्थों कि टकराहट के बावजूद सबका सहस्तित्व एवं सामंजस्यपूर्ण जीवन और साथ साथ जीने का आनंद संभव है
यही मनुष्यता है
यही ज्ञान और विज्ञानं है
यही विवेचना और तर्कपूर्ण विचारों का सारतत्व है
हमारी चेतना , हमारे अनुभव और हमारे ज्ञान इस सम्भावना को सबसे महत्वपूर्ण सम्भावना के रूप में रेखांकित करते हैं
हमें विज्ञानं को , स्वयं को , कुछ लोगों कि सुविधा मात्र के लिए रक्नीक मात्र में पहचाने जने से बचाना है
विज्ञानं को सत्ता एवं बाजार के प्रभुत्व से होने वाले दुरुपयोगों से बचाना है
हमें विज्ञानं एवं ज्ञान के अन्य स्वरूपों कि खोज एवं इनके उपयोगों को 'व्रहद मनुष्य समाज ' एवं टिकाऊ पृथ्वी के प्राकृतिक संतुलन एवं सच्चे एवं दीर्घकालीन सह अस्तित्व एवं सुखों के लिए विस्तारित करना है
यही विज्ञानं की , वैज्ञानिकों की एवं शिक्षकों की समकालीन एवं दीर्घकालीन सार्थकता है
डॉ राणा प्रताप सिंह
प्रोफ़ेसर एवं सन्कायाध्यक्ष
पर्यावरन विज्ञानं संकाय
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर
केन्द्रीय विश्व विद्यालय
लखनऊ --२५ --
परिभाषाएं अनगढ़ चीजों को एक शक्ल देती हैं , पर जरूरी नहीं कि चीजों की असली शक्ल वही हो , जो किसी ने गढ़ रखी है , और तमाम परिचित साधनों से ,उसे लोगों के बीच प्रचलित कर रखी हो
सदियों से जबसे मनुष्य ने स्वरूप लिया ,या उसके पहले भी ,जबसे प्रकृति और जीव ने स्वरूप लिया , नए नए अनुभव एवं उससे उपजे ज्ञान की खोज अनवरत जारी है
अनुभवों को साँझा करने के लिए पहले संकेत इजाद हुए ,फिर शब्द और उसी कर्म में भाषा
अनेक भाषाएँ
असंख्य शब्द और संकेत
फिर उनको वर्गीकृत एवं व्यवस्थित कर उनका संग्रहण , रेखांकन ,लेखन ,वाचन, गायन आदि शुरू हुआ, और इस तरह से विभिन्न समाजों के बीच इन अनुभवों एवं व्यवस्थित विचारों का आदान प्रदान हुआ
बहस मुसाहिबें हुईं
विवेचनाएँ हुईं
आलोचनाएँ हुईं और अधिक स्पष्ट एवं टिकाऊ लगी जानकारियों के आधार पर सिद्धiत बनें
उन सिधान्तों का उपयोग कर तकनीकें विकसित हुईं
यह सिलसिला कभी रूका नहीं
अनवरत चलता रहा
रूकेगा भी नहीं
रूक गया तो ज्ञान का चक्का थम जायेगा और मनुष्य कि दुनिया ठहर जायेगी
एक यात्रा में विराम आना ठीक है
हम थोड़ा ठहर कर पीछे मुड़कर देखते है ,थोड़ा सुस्ताते हैं
आगे कि यात्रा के लिए नई उर्जा संचित करते हैं
परंतू ठहराव आना ठीक नहीं
ठहराव लम्बा या अनिश्त्कालीन हो सकता है
यात्रा रूक सकती है
ज्ञान विज्ञानं कि खोज कि प्रक्रिया को हम एक चर्चित कहानी के माध्यम से अधिक बेहतर तरीके से समझ सकते हैं
चार आंधे लोग एक हाथी के करीब गये
सबने उसे छोकर देखा और उसके आकर और उसकी पहचान का अंदाजा लगाया
एक का हाथ पूंछ तक गया और उसने उसे रस्सी कहा
दूसरे का हाथ पैर तक गया और उसने उसे खम्बा कहा
तीसरे ने इसी तरह उसे दीवार और चौथे ने पंखा कहा
चार से अधिक होते तो जने और क्या क्या कहते
परन्तु एक ही चीज रस्सी ,खम्बा, दीवार और पंखा तो नहीं हो सकती
तो झगडा हुआ
सबके अनुभव खरे जो थे
थोड़ा गुस्सा कम होने पर विचार हुआ
आपस में विश्वास हो एवं विवेचनापूर्ण विचार हो तो हम सही चीजों तक पहुन्व्ह्ते ही हैं
उन्होंने भी बार बार इस अनुभव को दोहराने कि प्रक्रिया शुरू की
और फिर हैरान थे , सबके अनुभव सच थे
उन्होंने सभी अनुभवों को साझी विवेचना कर उस चीज का ,जिसे वे देख नहीं सकते थे ,एक स्वरूप बनाया
वह हाथी जैसा बना कि नहीं ,पता नहीं
पर इतना जरूर तय हुआ कि इस जानवर के मोटे मोटे पैर हैं , बड़ी पीठ है ,लम्बी पूंछ है और बड़े बड़े कान हैं
इस तरह सही पहचान कि दिशा में वे कदम दर कदम आगे बढे
ज्ञान कि खोज ऐसे ही होती है
विज्ञानं कि भी
हम कदम दर कदम आगे बढ़ते हैं
अनुभव करते हैं
विभिन्न तरह के प्रयोग करते हैं
बाकी स्थितियां स्थिर रखकर एक एक को बदलते हैं
उसका असर देखते हैं
फिर उनका समवेत आंकलन करते हैं
समीक्षा करते हैं , और विवेचना करते हैं
कर्म चलता रहता है
ज्ञान विज्ञानं आगे बढ़ता रहता है
ज्ञान और इसी के एक स्वरूप विज्ञानं का उपयोग कैसे हो ? किसके लिए हो और किसके खिलाफ हो ? यह कौन तय करता है ? क्या इसे खोज प्रक्रिया से हासिल करने वाले लोग ? मोटे तौर पर इसके उपयोग को समकालीन सत्ताएं जो पूरी व्यवस्था पर काबिज होती हैं , वे तय करती हैं , कि किस ज्ञान-विज्ञानं का उपयोग किसके लिए हो ,और किसके लिए न हों
वे ही तय करती हैं कि इसका प्रयोग किसके खिलाफ हो
और इसी तरह कि आवश्यकता एवं स्वार्थ आधारित उपयोगों के मद्दे नजर इसकी तकनिकी खोजी जाती है
चूंकि इस समय सत्ता के केंद्र में सिर्फ शाषक और प्रशासक ही नहीं ,बल्कि बाजार के नियंत्रक भी महतवपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं , इसलिए ज्ञान विज्ञानं को इन सबका स्वार्थ सिद्ध करना होता है
यह जनता का भी स्वार्थ सिद्ध कर सकती है , यदि सत्ता केंद्र में जनता हो
एक वास्तविक 'लोकतंत्र ' या 'जनतंत्र ' हो
सत्ता के केंद्र के विमर्श में केन्द्रीय भूमिका में व्यक्ति या व्यक्तियों का गिरोह ना होकर समूचा मनुष्य समाज हो , समूची प्रकृति हो , पृथ्वी और आकाश हो, हवा और पानी हो, पृथ्वी से भी इत्तर सम्पूर्ण ब्रह्मांड हो
'व्रहद मनुष्य समाज कि सत्ता हो
ज्ञान और विज्ञानं पर उसका समुचित नियंत्रण हो
जिस तरह ज्ञान और विज्ञानं का संघर्ष और उसकी विकास यात्रा जारी है
उसी तरह इस 'व्रहद मनुष्य समाज ' के अधिकार एवं नियंत्रण का भी संघर्ष एवं विकास यात्रा अनवरत जारी है
इसे देख पाने कि नजर विकशित करने कि जरूरत है
हमारे इर्द गिर्द कई समकालीन मुद्दे हैं
अलग अलग समूहों के, अलग अलग परिस्थितियों में राह रहे लोगों के, अलग अलग भौगोलिक एवं सामाजिक स्थितियों में राह रहे लोगों के अलग अलग मुद्दे हो सकते हैं
पर सबके केंद्र में स्वस्थ प्रकृति , स्वस्थ जीवन , सबके लिए संसाधनों का टिकाऊ दोहन , सबके लिए स्वास्थ्य , सबके लिए भोजन , वस्त्र , मकान, दवायें , सम्मान , एवं एक मुठ्ठी भर सुख कि दरकार है
सबको जीने का एकसा अधिकार है
न सिर्फ मनुष्यों को, अन्य जीवों को भी
पृथ्वी के सभी अवयवों का पृथ्वी में हिस्सा है , ठीक वैसे ही जैसे माँ बाप कि संपत्ति में सभी संतानों का एकसा अधिकार होता है
तमाम विरोधाभाषों एवं स्वार्थों कि टकराहट के बावजूद सबका सहस्तित्व एवं सामंजस्यपूर्ण जीवन और साथ साथ जीने का आनंद संभव है
यही मनुष्यता है
यही ज्ञान और विज्ञानं है
यही विवेचना और तर्कपूर्ण विचारों का सारतत्व है
हमारी चेतना , हमारे अनुभव और हमारे ज्ञान इस सम्भावना को सबसे महत्वपूर्ण सम्भावना के रूप में रेखांकित करते हैं
हमें विज्ञानं को , स्वयं को , कुछ लोगों कि सुविधा मात्र के लिए रक्नीक मात्र में पहचाने जने से बचाना है
विज्ञानं को सत्ता एवं बाजार के प्रभुत्व से होने वाले दुरुपयोगों से बचाना है
हमें विज्ञानं एवं ज्ञान के अन्य स्वरूपों कि खोज एवं इनके उपयोगों को 'व्रहद मनुष्य समाज ' एवं टिकाऊ पृथ्वी के प्राकृतिक संतुलन एवं सच्चे एवं दीर्घकालीन सह अस्तित्व एवं सुखों के लिए विस्तारित करना है
यही विज्ञानं की , वैज्ञानिकों की एवं शिक्षकों की समकालीन एवं दीर्घकालीन सार्थकता है
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