Monday, May 18, 2020

खून की जात ?


 आज के हरियाणा मैं जातां के ठेकेदार इतने पैदा होगे अक बूझो मतना। सब अपणी-अपणी जात्यां के सिस्से बढ़िया से फ्रेम मैं लवा कै कौम की सेवा करण की सूं खान्ते हाण्डैं सैं। ईसा लागै सै कई बै तो जणो पूरा ए हरियाणा जात्यां मैं बंट कै खड्या होगा अर जो माणस जातपात मैं यकीन नहीं करता उसनै हरियाणा मैं रैहण का कोए हक नहीं बचरया। गामां मैं भी माणस जात पै, गोत पै, कसूती ढाल तनकै खड़े होज्यां सैं। जागां-जागां हरिजनां के बान्ध बान्धे जाण लागरे सैं। जात के नाम पै बलात्कारी बचाए जाण लागरे सैं। निकम्मे अर चोर, ठग जात का साहरा लेकै चौधरी माणस बणे हांडैं सैं। ब्लैक करकै चौखा पीस्सा कमा लिया। दो चार पहलवानां नै गेल्यां कर लें सै अर जात के ठेकेदार। इनके तले ताहिं तलियार बी न्योंए सैं।
 ईसा ए जात का एक ठेकेदार, तप्या औड़ माणस था चौधरी रमलू। उसकी फुंकाड़ मैं घास जल्या करती। मजाल सै कोए हरिजन उसकी बैठक मैं खाट पै बी बैठ ज्या। उसके खेतां मैं कोए पां टेक कै तो दिखा द्यो। बेरा ना किसे हरिजन के बालक नै उसकै बचपन मैं किसी चोंहटकी भर राखी थी अक हरिजन का नाम आया नहीं अर ओ फड़क्यां नहीं। के होया अक भाई नै भैंसा की डेरी खोलण का सौक चढ़ग्या। झीमरां का बालक धार काढ़ण ताहिं राख लिया। कुछ दिन पाछै ओ बीमार होग्या तो धार कूण काढ़ै। पड़ौस मैं हरिजना का गाभरू छोरा अत्तर था। पांच सात दिन उसनै धार काढ़ी। एक दिन उसकी मां रमलू कै घरां किमै मांगण चाली गई तै रमलू की बहू किढ़ावणी मां तै दूध काढण लागरी थी। अत्तर की मां बी ऊंकै धोरै जा खड़ी हुई तै उसका पल्ला किढ़ावणी कै लागग्या। तो फेर के था रमलू की बहू नै तो जमीन असमान एक कर दिया। म्हारी किढ़ावणी बेहू करदी अर और बेरा ना के के। अत्तर की मां बिचारी कुछ नहीं बोली पर मनै मन न्यों सोचण लाग्गी अक जिब मेरा छोरा धार काढ़ै तो बाल्टी बी बेहू ना होन्ती अर ना दूध बेहू होन्ता अर मेरे पल्ले तै किड़ावणी बेहू होज्या सै।
 थोड़े दिन पाछै रमलू चौधरी करड़ा बीमार होग्या। बवासीर की तकलीफ थी खून घणा पड़ग्या। लाल मुंह था ओ जमा पीला पड़ग्या। चालण की आसंग रही ना। घरके मैडीकल मैं लेगे। उड़ै जान्तें ए तो डाक्टरां नै खून चढ़ाण की बात करी। ब्लड बैंक मैं उसके नम्बर का खून ना था। दोनों छोरे बी कन्नी काटगे। डाक्टर तै बूझ्या अक मोल नहीं मिलज्या खून। डाक्टर नै बी टका सा जवाब दे दिया अक माणस कै माणस का खून चढ़ै सै हाथी का खून थोड़े ए चढ़ाणा सै। अर जिब तम इसके बेटे ए इस ताहिं खून नहीं दे कै राजी तो और कोए कौण देवैगा। घूम फिरकै वे दो रिक्से आल्यां नै पाकड़ ल्याये चार सौ चार सौ रुपइयां मैं। खून दे दिया उननै तो रिकार्ड मैं नाम लिखावण लागे तो एक नै लिखाया रामचन्द्र सन आफ फत्ते सिंह बाल्मिकी अर दूसरे नै लिखाया लालचन्द वल्द कन्हैया हरिजन अर गाम का नाम। रमलू के दोनों छोरे एक बै तो हिचकिचाए पर फेर सैड़ दे सी दोनों बोत्तल ले कै वार्ड मैं पहोंचगे। डाक्टर नै वे खून की दोनों बोतल चढ़ा दी रमलू कै। उसके दोनूं छोरां कै जाड्डा चढ़रया था अक कदे बाबू बूझले अक यो किसका खून सै तो के जवाब देवांगे। पर रमलू तो आंख मींच कै पड़या रहया। आगले दिन रामचन्द्र अपणे बकाया पीस्से लेण वार्ड मैं आया तो रमलू नै बूझ लिया अक क्यांह के पीस्से। तो रामचन्द्र नै सारी बात बताई। रमलू ने बूझ्या अक तेरी जात के सै भाई तो रामचन्द्र नै बतादी अर लालचन्द की बी बतादी। रमलू तो चुप खींचगा, भींत बोलै तो रमलू बोलै। पीस्से दे कै सैड़ दे सी रामचन्द्र फारिग कर दिया अर मन समझाया अक खून मैं जातपात कीसी, खून तो सबका एक सा ऐ हो सै।

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