Saturday, May 30, 2020

working

सिरसा में 1954 -1956 के बीच रहे हम 

Monday, May 18, 2020

मैडीकल ठेके पै

KHAREE KHOTEE
मैडीकल ठेके पै
 मैडीकल नै आजकाल पी जी आई कहवण लागगे। न्यों कहवैं सैं अक सरकार नै इसका औधा बधा दिया। बाकी सब किमै न्यों का न्यों तै नाम बदलण की बी के जरूरत थी। हरियाणे का इकलौता मैडीकल पर अखबारां आले इसके पाछै पड़े रहवैं सैं। आजकाल मैडीकल आल्यां कै एक धुन और सवार होई सै। या धुन आई तै वर्ल्ड बैंक धोरे तै चाल कै सै पर आड़े के कार मुख्त्यार इसनै निखालस अपणे दिमाग की उपज बतावैं सैं। सुद्ध हरियाणवी अर और बी सही कही जा तै सही रोहतकी। या धुन सै सब किमै ठेके पै देवण की। पहलम कैन्टीनां का ठेका उठ्या करता, स्कूटर स्टैंड का ठेका उठता देख्या फेर इबतै ठेक्यां का कोए औड़ै कोण्या रह्या।
 मैडीकल कालेज मैं रहणियां की सबकी सारी हाण घिग्घी बन्धी रहवै सै। कदे इस डाक्टर कै घरां चोरी तै कदै उस डाक्टर के घरां चोरी। कदे स्कूटर की चोरी तै कदे कार की चोरी की सीनाजोरी। अस्पताल मैं वार्डां मैं मरीजां के रिश्तेदारां की सामत आई रहवै सै रोज, ओ पी डी मैं बीमारी की मार फेर ऊपर तै भीड़ की लाइन की मार अर सोने पै सुहागा यो अक पाकेट मारां की मार। डाक्टर मरीजां पै वार करैं अर जेब कतरे मरीजां अर डाक्टरां दोनूआं पै दया दृष्टि राखैं सैं अपनी। चोरी की बी देखी जा माणस और मेहनत करकै कमा ले।
 आजकाल एक साक्का और बधग्या। महिला चाहे डाक्टर हो चाहे नर्स हो, चाहे स्वीपर हो अर चाहे मरीज हो अर चाहे पढ़ण आली हो, उसकी गेल्यां बहोतै भुण्डी बणै सै। राह चालदी औरतां नै छोरियां नै छेड़ना बधता जावण लागरया सै। बदमासां के टोल के टोल हांडे जावैं सैं। कोए रोक टोक ना। कई डाक्टर अर नर्स बतावैं सैं अक कई बर तो ड्यूटी पै उनकी गेल्यां बहोतै भुण्डी बणै सै। कई महिला मरीजां अर उसकी रिस्तेदार देखभाल करण आली औरतां की मजबूरी का फायदा ठावन्ते लोग वार नहीं लावन्ते। लेडी डाक्टर अर नर्सां के छात्रावासां मैं भी असामाजिक तत्वां की घुसपैठ दिन पै दिन बधती जावण लागरी सैं। सुरक्षा के प्रबन्ध बहोतै ढीले बताये अर पुलिस चौकी (मैडीकल आली) पै तै दिन छिपे पाछै सोमरस का भोग लाकै घणखरे पुलिस आले राम की भक्ति मैं लीन हुए पावैं सैं। कई बै ये सवाल उठे अर आखिर मैं प्रशासन के समझ मैं आगी अक मैडीकल की सुरक्षा का काम ठेके पै दे दिया जा तो चोरी जारी अर बदमाशी पै कंट्रोल कर्या जा सकै सै। देखियो कदे जिन ताहिं ठेका दिया जा वोहे चोहदी के बदमाश लिकड़याए तै के मण बीघै उतरैगी?
 कई बै जिब मरीज धोई औड़ बैड सीट मांगले कै ड्राई क्लीन कर्या औड़ साफ काम्बल मांगले तै उसनै नहीं मिल सकता चाहे मंत्री ताहिं की सिफारिस करवा कै देख ले। अर मंत्री बी उस एक मरीज की खातर तै टैलीफोन कर देगा फेर बाकी भी तै मरीज सैं इस मैडीकल मैं उनकी चिन्ता ना मन्त्रियां अर ना मुख्यमंत्री जी नै। जड़ बात या सै अक साफ बैड सीट का जिकरा चालै तै लाण्ड्री का जिकरा चाल पड़ै अर इसकी मसीन 30 साल पुरानी, बदलै कूण? तै प्रशासन मैं बैठे लोग फेर न्यों कैहदें सैं अक कपड़यां की धुलाई का काम भी ठेके पै देण की प्लान बणन लागरी सै।
 वार्डां की सफाई का मसला हो चाहे बाथरूमां की सफाई का मसला हो अर चाहे प्रेशन तै पहलम मरीज के बालां की सफाई का मसला हो, इन सारे कामां खातर ठेकेदारी प्रथा की वकालत करणिया बहोत पैदा होगे हरियाणा मैं। तै फेर तै सारा ए मैडीकल ठेके पै छुटा दिया जा। सरकार का 32 करोड़ का बजट बच ज्यागा अर 30-40 करोड़ रुपइये मैं इसका ठेका उठैगा। इसी तंगी के बख्तां मैं सरकार ने 72 करोड़ का फायदा हो सकै सै इस दवाई तै। ठेके पै काम तै डाक्टरां की ‘स्टीराइड’ आली रामबाण दवाई सै बेरा ना इब ताहिं सरकार की समझ मैं क्यों नहीं आली ?
 जनता का के होगा? इसकी परवाह ना सरकार नै सै अर ना खुद जनता नै सै। अर जै न्यों ए चालता रहया तै पहलम तै पूरा मैडीकल ठेके पै ठवाया जागा। फेर न्यों ए एक पूरा जिला ठेके पै चलावण की बात बी चाल सकै सै अर फेर पूरा हरियाणा अर फेर कदे पूरा भारत देश ठेके पै जावैगा।
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ranbir dahiya

ARDH KANWARI KA ANUBHAV

पुरानी यादें 
24 -25 साल पहले की बात है । नार्थ जोन सर्जन कांफ्रेंस जम्मू में आयोजित की गई थी । रोहतक से 25-30 डॉक्टर थे । एक दिन सभी का मन वैष्णो देवी मंदिर की यात्रा का बना। मैने मना किया तो सभी ने अनुरोध किया कि चलें । हम चल दिये । 
       अर्ध कन्वारी से कुछ पहले 4-5 महिलाएं और 5-6 पुरुष परेशान से दिखाई दे रहे थे। हमारे में से किसी ने पूछा-क्या बात है क्या हुआ। 
बताया- उनके एक बुजुर्ग पेशाब करने बैठे थे और वे नीचे खाई में लुढ़क गए हैं । उन्हें देखने गए हैं। 
       हमने भी बुजुर्ग को ढूंढने की इच्छा बनाई और 5-6 डॉक्टर हम नीचे उतरते चले गए । 150 गज के करीब नीचे उतरने के बाद हमने आवाज लगाई कि क्या बुजुर्ग मिल गए। और नीचे से आवाज आई- हाँ मिल गए। हमने पूछा- कैसी तबियत है? जवाब आया- ठीक हैं। उप्पर रास्ते में खड़े लोगों ने सुना तो कुछ जय माता की बोलते चले गए।
         हमने फिर पूछा कि हम डॉक्टर हैं कोई चोट है तो हम आ जाते हैं मदद करने । बताओ कहाँ पर हो।
फिर आवाज आई थोड़ी धीमी - वो तो चल बसे । इतनी देर में हम भी वहां पहुंच गए थे। पूछा- पहले ठीक क्यों कहा ? जवाब था कि ऊपर वाले रिश्तेदारों में से किसी को सदमा न लग जाये इसलिए । 
        कुछ लोगों को तो लगा कि माता ने उस बुजुर्ग को बचा लिया। मगर सच्चाई यही थी कि माता उस बुजुर्ग को नहीं बचा पाई। 
      मैने सभी डॉक्टर सहयोगियों से पूछा -- यदि बुजुर्ग जिंदा होते और चोटिल होते तो हम क्या फर्स्ट एड कर सकते थे । सब ने अपने अपने ढंग से बात रखी। मैने फिर कहा- बिना इमरजेंसी किट के शायद हम ज्यादा फर्स्ट एड करने की हालत में नहीं होते।
         हम सबने तय किया कि जब इस तरह के ग्रुप में कहीं जाएंगे तो इमरजेंसी किट जरूर साथ लेकर चलेंगे । 
बाकियों का तो पता नहीं मैने एक किट जरूर बना ली । 
तीन साल बाद वही कांफ्रेंस पी जी आई चंडीगढ़ में थी। कालेज की बस में गए थे हम सब । वापसी पर अम्बाला पहुंचने से पहले हमारे सामने ट्रैक्टर सड़क के किनारे पलट गया। हमने गाड़ी रुकवाई ।
    ड्राइवर ट्रैक्टर के पहिये के नीचे दबा था । हमने सबने मिलकर उसको निकाला और देखा तो वह शॉक में था । मैं ने इमरजेंसी किट से उसे मेफेंटीन इंजेक्शन दिया और एक वोवरान का inj दिया । कुछ संम्भल गया मरीज । हमने उसे अपनी गाड़ी में लिटाया और उसे अम्बाला सिविल अस्पताल में दाखिल करवाया । इलाज शुरू हुआ तो मरीज और इम्प्रूव हुआ ।
   3 साल तक लगता था यह किट खामखा उठाये फिरता हूँ मगर उस रोज लगा कि खामखा नहीं उठाई किट ।
शायद जो डॉक्टर साथी इन दोनों मौकों पर थे उनको याद हों ये दोनों घटनाएं ।

रणबीर दहिया

Beri ka anubhav

पुरानी यादें --मेरे बॉस डॉ सेखों 
1976 -1977 का दौर 

मेरी पोस्टिंग spm deptt की तरफ से सिविल अस्पताल बेरी में कर दी गई। सिविल अस्पताल के अलावा लेडीज का विंग भी था बाजार के अंदर जा कर । उसमें एक बुजुर्ग महिला फार्मासिस्ट की पोस्टिंग थी। designation दूसरा भी हो सकता है । वहां से सन्देश आया शाम के वक्त कि एक मुश्किल डिलीवरी है और डॉक्टर साहब को बुलाया है। मैं सोचता जा रहा था कि डेढ़ महीने की  maternity ड्यूटी में 5 या 6 डिलीवरी देखी थी। सोचते सोचते पहुंच कर देखा कि breech डिलीवरी थी। monaster था। चार टांगे , चार बाजू , धड़ एक और दो सिर वाला। चारों टांगे और दो बाजू डिलीवर हो चुकी थी। देख कर पसीने छूट गए। एक मिनट सोचा कि मेडिकल भेज दिया जाए। फिर सोचा इस हालत में कैसे भेजेंगे? अगले ही पल सोचा कोशिश करते हैं । मन ही मन Dr GS Sekhon मेरे बॉस याद आ गए। वे कहते थे कि कितना भी मुश्किल मामला हो अपनी कॉमन सैंस को मत भूलो और पक्के निश्चय के साथ शांत भाव से जुट जाओ । जुट गया । जल्दी लोकल लगाकर  episiotomy incision दिया और निरीक्षण किया। महिला का हौंसला बढ़ाया। बाकी के दो बाजू डिलीवर करने में 15 मिन्ट लगे । पसीने छूट रहे थे । खैर फिर मुश्किल से एक सिर और डिलीवर करवाया। फिर भी कुछ बाकी था । देखा अच्छी तरह तो एक सिर अभी बाकी था और पहले वाले सिर से कुछ बड़ा था । कोशिश की । episiotomy incision को extend किया । 15 से 20 मिन्ट की मश्शक्त के बाद दूसरा सिर भी डिलीवर हो गया । monaster था डेथ हो चुकी थी। मगर हम महिला को बचा पाए। पता लगता गया कि दो सिर चार बाजू चार टांगो वाला बच्चा पैदा हुआ है । कौतूहल वश बहुत लोग इकट्ठे हो गए थे। 6 महीने के बाद वापिस spm deptt में आ गया । 2-3 साल के बाद एक हैंड प्रोलैप्स का केस रेफ़ेर हुआ मेडिकल के लिए । रहडू पर लिटा कर बाजार के बीच से ले जा रहे थे तो किसी ने पूछा के बात कहां ले जा रहे हो। बताया कि एक हाथ बाहर आ गया । मेडिकल ले जा रहे हैं । तो अनजाने में उस बुजुर्ग ने कहा - एक बख्त वो था जिब चार चार हाथां आले की डिलीवरी करवा दी थी, आज एक हाथ काबू कोनी आया। किसी ने बताया था जब वह मरीज मेरे पास 6 वार्ड में दाखिल था । मेरे को मेरे बॉस Dr सेखों एक बार फिर याद आये। बहुत अलग किस्म की इंसानियत के धनी थे Dr सेखों।

वार्ड 6-- भूली बिसरी यादें

वार्ड  6-- भूली बिसरी यादें 
एक बार की बात की झरौट के बुजुर्ग अपनी घरवाली को लेकर आये । उसकी एक टांग में गैंग्रीन हो गई बायीं या दायीं याद नहीं। हमने सभी concerned विभागों की राय ली और यह तय हुआ कि amputation करनी होगी । ताऊ को समझाया। कटने की बात सुनकर दोनों घबरा गए । ताऊ मेरे कमरे में आया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। मैने बिठाया और उसकी और देखा। " काटनी ए पड़ैगी डॉ साहब। और कोए राह कोण्या इसकी ज्यान नै खतरा करदेगी या गैंग्रीन -- मैंने जवाब दिया बहुत धीमे से। ताऊ बोल्या-- न्यों कहवै सैं अक गुड़गांव मैं शीतला माता की धोक मारकै ठीक होज्यां हैं। मैंने कहा-- मेरी जानकारी में नहीं। ताऊ-- एक बार जाना चाहवैं सैं। फेर आपके डॉ न्यों बोले-- LAMA होज्या । छुट्टी कोण्या देवें । और फिर हमारे वार्ड में दाखिला नहीं हो सकता। चाहूँ सू आप के वार्ड मैं इलाज करवाना। मैने कहा एक शर्त है-- जै इसकी टांग धोक मारकै ठीक होज्या तो भी लियाईये और नहीं ठीक हो तो भी। ठीक होगी तो मैं बाकी के इसे मरीज भी वहीं गुड़गांव भेज दिया करूंगा और ठीक न हो तो आप ये सारी बात एक पर्चे में लिखकर बांटना कि वहां मेरी घरवाली ठीक नहीं हुई। हम ने discharge on request कर दिया । दो दिन बाद वापिस आ गया । महिला की हालत ज्यादा खराब हुई थी। खैर amputation ortho विभाग  के सहयोग से की और महिला ठीक होकर चली गयी । बुजुर्ग जाने से पहले आया कमरे में और कहने लगा-- पर्चा छापना चाहूँ सूँ फेर गांव वाले कह रहे हैं शीतला माता 

 के खिलाफ पर्चा। बहोत दबाव सै मेरे पै डॉ साहब । पैरों की तरफ हाथ किये । मैने बुजुर्ग को छाती से लगा लिया और आशीर्वाद देने को कहा।

खून की जात ?


 आज के हरियाणा मैं जातां के ठेकेदार इतने पैदा होगे अक बूझो मतना। सब अपणी-अपणी जात्यां के सिस्से बढ़िया से फ्रेम मैं लवा कै कौम की सेवा करण की सूं खान्ते हाण्डैं सैं। ईसा लागै सै कई बै तो जणो पूरा ए हरियाणा जात्यां मैं बंट कै खड्या होगा अर जो माणस जातपात मैं यकीन नहीं करता उसनै हरियाणा मैं रैहण का कोए हक नहीं बचरया। गामां मैं भी माणस जात पै, गोत पै, कसूती ढाल तनकै खड़े होज्यां सैं। जागां-जागां हरिजनां के बान्ध बान्धे जाण लागरे सैं। जात के नाम पै बलात्कारी बचाए जाण लागरे सैं। निकम्मे अर चोर, ठग जात का साहरा लेकै चौधरी माणस बणे हांडैं सैं। ब्लैक करकै चौखा पीस्सा कमा लिया। दो चार पहलवानां नै गेल्यां कर लें सै अर जात के ठेकेदार। इनके तले ताहिं तलियार बी न्योंए सैं।
 ईसा ए जात का एक ठेकेदार, तप्या औड़ माणस था चौधरी रमलू। उसकी फुंकाड़ मैं घास जल्या करती। मजाल सै कोए हरिजन उसकी बैठक मैं खाट पै बी बैठ ज्या। उसके खेतां मैं कोए पां टेक कै तो दिखा द्यो। बेरा ना किसे हरिजन के बालक नै उसकै बचपन मैं किसी चोंहटकी भर राखी थी अक हरिजन का नाम आया नहीं अर ओ फड़क्यां नहीं। के होया अक भाई नै भैंसा की डेरी खोलण का सौक चढ़ग्या। झीमरां का बालक धार काढ़ण ताहिं राख लिया। कुछ दिन पाछै ओ बीमार होग्या तो धार कूण काढ़ै। पड़ौस मैं हरिजना का गाभरू छोरा अत्तर था। पांच सात दिन उसनै धार काढ़ी। एक दिन उसकी मां रमलू कै घरां किमै मांगण चाली गई तै रमलू की बहू किढ़ावणी मां तै दूध काढण लागरी थी। अत्तर की मां बी ऊंकै धोरै जा खड़ी हुई तै उसका पल्ला किढ़ावणी कै लागग्या। तो फेर के था रमलू की बहू नै तो जमीन असमान एक कर दिया। म्हारी किढ़ावणी बेहू करदी अर और बेरा ना के के। अत्तर की मां बिचारी कुछ नहीं बोली पर मनै मन न्यों सोचण लाग्गी अक जिब मेरा छोरा धार काढ़ै तो बाल्टी बी बेहू ना होन्ती अर ना दूध बेहू होन्ता अर मेरे पल्ले तै किड़ावणी बेहू होज्या सै।
 थोड़े दिन पाछै रमलू चौधरी करड़ा बीमार होग्या। बवासीर की तकलीफ थी खून घणा पड़ग्या। लाल मुंह था ओ जमा पीला पड़ग्या। चालण की आसंग रही ना। घरके मैडीकल मैं लेगे। उड़ै जान्तें ए तो डाक्टरां नै खून चढ़ाण की बात करी। ब्लड बैंक मैं उसके नम्बर का खून ना था। दोनों छोरे बी कन्नी काटगे। डाक्टर तै बूझ्या अक मोल नहीं मिलज्या खून। डाक्टर नै बी टका सा जवाब दे दिया अक माणस कै माणस का खून चढ़ै सै हाथी का खून थोड़े ए चढ़ाणा सै। अर जिब तम इसके बेटे ए इस ताहिं खून नहीं दे कै राजी तो और कोए कौण देवैगा। घूम फिरकै वे दो रिक्से आल्यां नै पाकड़ ल्याये चार सौ चार सौ रुपइयां मैं। खून दे दिया उननै तो रिकार्ड मैं नाम लिखावण लागे तो एक नै लिखाया रामचन्द्र सन आफ फत्ते सिंह बाल्मिकी अर दूसरे नै लिखाया लालचन्द वल्द कन्हैया हरिजन अर गाम का नाम। रमलू के दोनों छोरे एक बै तो हिचकिचाए पर फेर सैड़ दे सी दोनों बोत्तल ले कै वार्ड मैं पहोंचगे। डाक्टर नै वे खून की दोनों बोतल चढ़ा दी रमलू कै। उसके दोनूं छोरां कै जाड्डा चढ़रया था अक कदे बाबू बूझले अक यो किसका खून सै तो के जवाब देवांगे। पर रमलू तो आंख मींच कै पड़या रहया। आगले दिन रामचन्द्र अपणे बकाया पीस्से लेण वार्ड मैं आया तो रमलू नै बूझ लिया अक क्यांह के पीस्से। तो रामचन्द्र नै सारी बात बताई। रमलू ने बूझ्या अक तेरी जात के सै भाई तो रामचन्द्र नै बतादी अर लालचन्द की बी बतादी। रमलू तो चुप खींचगा, भींत बोलै तो रमलू बोलै। पीस्से दे कै सैड़ दे सी रामचन्द्र फारिग कर दिया अर मन समझाया अक खून मैं जातपात कीसी, खून तो सबका एक सा ऐ हो सै।

Blood Donation and Operation

2014 अगस्त में रिटायरमेंट के टाइम पूरी यूनिट के डॉक्टर एक साथ अपनी पुरानी यादें, पुराने दुख सुख के दिन जो यूनिट में गुजरे थे उन्हें अपने अपने ढंग से याद कर रहे थे। एक सीनियर एस आर ने बताया कि एक बार एक unkown मरीज एक्सीडेंट के साथ आया । उसके पेट में चोट थी। उसको ऑपरेट करने की जरूरत थी मगर उसके ग्रुप का खून ब्लड बैंक में नहीं था । बताया कि सर आपका o पॉजिटिव ब्लड है जो पॉजिटिव दूसरे सभी ग्रुप्स को दिया जा सकता है। आप ब्लड बैंक गए वहां एक यूनिट ब्लड unkown मरीज के लिए दिया और वापिस आकर उसका आपरेशन किया। मरीज बचा लिया गया। 
मैने बहुत कोशिश की पुरानी याद को याद करने की । मगर जब डेट आदि बताई तो मुझे भी यकीन हुआ कि ऐसा कुछ हुआ था। 
और भी कई ना भुलाई जाने वाली पुरानी यादें साझा की गई। अब थोड़ा उम्र का असर होने लगा है तो सोचा सांझा कर लूँ सभी के साथ। मौके पर लिया गया फैंसला यदि एक ज्यान को भी बचा पाता है एक डॉक्टर के जीवन में तो एक एहसास और विश्वास बढ़ता है डॉक्टर का।
मेरे साथ के हमसफ़र सभी डॉक्टरों को याद करते हुए | मुझे गर्व है अपनी यूनिट के उन सभी डॉक्टरों पर जो मरीजों की सेवा में लग्न हैं। 

डॉ रणबीर

मैडिकल कालेज की त्रासदी !!

रोहतक पोस्ट 
सोमवार ,9 नवम्बर 1998
मैडिकल कालेज की त्रासदी !!
पंडित भगवत दयाल शर्मा मैडिकल कालेज रोहतक की यह त्रासदी ही कही जायेगी क़ि जो देश में आयुर्विज्ञान (मैडिकल साइंस ) के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान होते हुए भी व चिकित्सा में उपयोगी लगभग सभी सुविधाओं से परिपूर्ण व काबिल डाक्टरों द्वारा कार्यरत इतना बड़ा अस्पताल आज आम आदमी की नजर में "बुचड्खाने"की संज्ञा बनता जा रहा है । 
क्या यहाँ आम आदमी का बिना सिफारिस या बिना रिश्वत के इलाज नहीं होता है ? क्या यहाँ सभी डाक्टर व कर्मचारी गैर मानवीय और गैर संवेदन शील मनोवृति रखते हैं और मरीजों और उनके अभिभावकों के साथ असहनीय दुर्व्यवहार करते हैं ? आदि आदि....।नहीं ! ऐसा नहीं है । हालाँकि ऐसे भी सैंकड़ों  उदाहरण मिल रहे हैं -जिनमें डाक्टरों और कर्मचारियों पर सीधा आरोप है क़ि उनकी लापरवाही से उनके संबंधित बच्चे या किसी बड़े की मौत हो गयी , अमुक व्यक्ति का अमुक डाक्टर ने रिश्वत लेकर ही आपरेशन किया वरना व्यर्थ ही चक्कर कटवा रहा था । मरीजों व उनके अभिभावकों के साथ असहनीय दुर्व्यवहार किया । जो आम बात है - शामिल हैं ।
मगर यदि गहराई से यदि अध्ययन किया जाये तो पाएंगे क़ि ज्यादातर डाक्टर काबिल,इमानदार और व्यवहार कुशल हैं ।अन्य कर्मचारी भी ज्यादातर मददगार रवैया रखने वाले हैं । परन्तु फिर ऐसा क्यूं ? क्योंकि कुछ डाक्टर ऐसा ही करते रहे हैं और आज भी सरे आम कर रहे हैं । बदनाम होती है पूरी संस्था और उससे जुड़े सभी लोग ।
इसमें सबसे चिंताजनक बात यह है क़ि ऐसे भ्रष्ट और गैर संवेदनशील डाक्टर सभी क़ि जानकारी में हैं और उनको हर रोज उनके अपने डाक्टर समाज में भी नीचा नहीं देखना पड़ता बल्कि मौका आने पर yahi लोग पदोन्नति व अन्य प्रतिष्ठित पद हडपने में सफल रहते हैं । सोचनीय है क़ि ऐसा कब तक चलेगा ।

There are very nice  and honest and highly professional there  on the other hand there are few who giving bad name to the institute. We are dealing with patient in periphery  and still feels that PGIMS is best option for a poor man.   Work load , duty hours ect  are different issue which affects the quality .
Dr Kamla Verma 

As far as ECG is concerned, every ward can be allotted one. Every doctor should know doing ECG. Simple solution.
Dr Satya Parkash Yadav 


Interesting debate. Fair no of people who commented have worked in PGIMS at various point of time.
First look at appointments. There is a clear accusation that a particular caste has disproportionate representation. Nothing can be farther from the truth. You can get the information through RTI. We must not play divisive politics just for the sake of making a comment
Secondly Political interference . Yes it is there & no body denies it. It is more in the form of appointments & transfers. But wherever HODs have shown resistance & spine, politicians have also gracefully withdrawn.
Thirdly competence of faculty.  You need to rate it on parameters of professional competence, teaching, research & administrative abilities . If one weakness I will pickup is it is research as majority of the time is consumed in patient care,teaching & administrative work. 
Fourth work load. Avg daily OPD  5,3000 & 24 hrs emergency is appx 615 cases. How many you think humanly one can examine & evaluate??
Fifth inadequate no of nurses & paramedics. We need nearly 3000 nurses. Sanctioned strength app 850. Now you have to give all, sort of leaves as part of service conditions so practically nearly 500 nurses on duty at a point of time.
Sixth. Machinery & equipment we are still struggling to get the latest. Procurement hassles , court cases, RTI & Maintainence issues. 
Seventh. Mother of all finances. It is only for last 2 yrs the money has started coming. Therefore the effect will be seen by the middle of next year.
Wards of some of the friends have studied here. What they expect is not training but attendance in absence so that their children can study for PG examinations.
List is long. I am not even once saying we donot have shortcomings. We have plenty of them. We have failed miserably in projection. How many of friends know that we are organising UGS workshops, conferences & training them through simulations?
Has any ex student came out for help in real sense? 
When everybody abuses( criticises) you daily you develop an attitude " I damn care".
Please help us in improving by constructive criticism & suggestions.
We are working under tremendous stress with limited resources & with our hands tied behind. 

Give us proper funding, more importantly visionary leadership & freehand to do structural changes results will be visible in a year
Dr Dhruv Chaudhary
Make it a referral hospital,it will solve most of the problems
Sarwan Sethi 

As I said earlier every district has to have a fully equipped hospital that would automatically reduce the work load on PGIMS but its working has also to improve; I agree with Dr Yadav that Doctors (in general all the officer level people in government) have to be more apt in using equipment that will improve their own efficiency and satisfaction.
Balbir Malik 

I am happy that a genuine debate is going on . Agree with Balbir Malik that till the primary and secondary level heath services are not strenthened,it is very difficult to improve things at tertiary level- PGIMS-.Also the doctors and staff who are corrupt from head to toes should be given exemplery punishment .
R.S.Dahiya

Dahiya ji how is is functioning am sharing a very interesting and shocking incident. there were two posts in institute. top boss sent name of two and asked the concerned boss to select anyone who clears  technical test. one .one aspirant who was not sure of clearing  the test gave some lakhs to some officials of pgi and he was selected, when political boss congratulated the candidate he told that i had paid this much money to  this   gentleman and top boss was shocked and asked   some one in institute  who confirmed and money was refunded. what can u expect from such stuff gone are the days of dr vidhysagr

until major surgery is not done in pgi   only god can save it and poor will suffer
Pawan Bansal 

These state of affairs reflect state of affairs of state of Haryana, whether new government is seen to rectify the situation?
Balbir Malik 

राध (पीप

दूध पीने से सेहत बनती है , राध (पीप )
नहीं ।
डॉक्टर जी एस सेखों जी के वार्ड में हाउस जॉब शुरू की । वार्ड में कई तरह के कोल्हू की चोट पर पोस्टर थे और एक पोस्टर यह भी था कि
" दूध पीने से सेहत बनती है , जख्म जल्दी ठीक होता है। राध(पीप ) नहीं बनती।"
    कई दिन सोचता रहा," यह पोस्टर बनाने की क्या जरूरत थी । सब जानते हैं कि ऑपेरशन के बाद दूध पियो तो जख्म जल्दी ठीक होता है। " पीप " का क्या मामला है। 
 जब अगले 6 महीने की हाउस जॉब शुरू की तो एक हर्निया का मरीज आपरेशन के बाद टांके निकलवाने आया । टांके निकाल दिए। दवाई वगैरह बता दी। ताऊ चल दिया। पांच सात कदम चल कर वापिस आकर मेरे कान की तरफ मूंह करके पूछा," दूध पीना शुरू कर दयूं?
मैन हैरान होकर पूछा ," दूध पीने के लिए मना कौनसे डॉक्टर ने किया था?
इधर उधर देख कर बोला ," गांव में होक्के पर बैठे लोग कह रहे थे कि दूध पीने से टांकों में राध (पीप) हो जाती है। मैने समझाया ऐसा कुछ नहीं है। 
इस मिथ को जनता में दूर करते करते डॉक्टर जी एस सेखों ने पूरा जीवन लगा दिया । थोड़ी बहुत कोशिश मैने भी की। मगर यह भरम आज भी चल ही रहा है कि दूध पीने से टांकों में पीप पड़ जाती है। 
अभी भी अभियान जारी है कि दूध पीने से सेहत बनती है पीप नहीं पड़ती टांकों में । आप भी मदद करें ।

Sunday, May 17, 2020

radh peep nahin

दूध पीने से सेहत बनती है , राध (पीप )
नहीं ।
डॉक्टर जी एस सेखों जी के वार्ड में हाउस जॉब शुरू की । वार्ड में कई तरह के कोल्हू की चोट पर पोस्टर थे और एक पोस्टर यह भी था कि
" दूध पीने से सेहत बनती है , जख्म जल्दी ठीक होता है। राध(पीप ) नहीं बनती।"
    कई दिन सोचता रहा," यह पोस्टर बनाने की क्या जरूरत थी । सब जानते हैं कि ऑपेरशन के बाद दूध पियो तो जख्म जल्दी ठीक होता है। " पीप " का क्या मामला है। 
 जब अगले 6 महीने की हाउस जॉब शुरू की तो एक हर्निया का मरीज आपरेशन के बाद टांके निकलवाने आया । टांके निकाल दिए। दवाई वगैरह बता दी। ताऊ चल दिया। पांच सात कदम चल कर वापिस आकर मेरे कान की तरफ मूंह करके पूछा," दूध पीना शुरू कर दयूं?
मैन हैरान होकर पूछा ," दूध पीने के लिए मना कौनसे डॉक्टर ने किया था?
इधर उधर देख कर बोला ," गांव में होक्के पर बैठे लोग कह रहे थे कि दूध पीने से टांकों में राध (पीप) हो जाती है। मैने समझाया ऐसा कुछ नहीं है। 
इस मिथ को जनता में दूर करते करते डॉक्टर जी एस सेखों ने पूरा जीवन लगा दिया । थोड़ी बहुत कोशिश मैने भी की। मगर यह भरम आज भी चल ही रहा है कि दूध पीने से टांकों में पीप पड़ जाती है। 
अभी भी अभियान जारी है कि दूध पीने से सेहत बनती है पीप नहीं पड़ती टांकों में । आप भी मदद करें ।

रोहतक पोस्ट 1998 

Medical college 1978 98 days strike

Some of us still remember the torturing days of strike in Medical College Rohtak for 98 days in the year 1977. The dividion on strikers and non strikers was on extreeme caste based .PGIMS Suffered a lot in post strike period. More or less the same type of caste dirty play is active on the campus again . We should be careful about this . Our main and real issues then take back seat .

The time we went on the longest strike in the medical colleges' history(1978)!! Ved Pal Mehla



1977 strike against HARDWARI LAL


FRIENDLY CIRCLE


CHANDIGARH AGITATION


STRIKE AGAINST BANSI LAL ATROCITIES


CHANDIGARH AGITATION


LITERARY AND MAGZINE CLUB


PRESIDENT ATHLETIC CLUB


SECRETARY CULTURAL CLUB


CHIEF VIGILANCE OFFICER


CONTROLLER OF EXAM


SENIOR PROFESSOR SURGERY


professor surgery


ASSOCIATE PROFESSOR SUGERY


LECTURER GENERAL SURGERY


REGISTRAR GENERAL SURGERY


REGISTRAR PAED. SURGERY


HCMS SPM DEPARTMENT


PG IN SURGERY


HOUSE JOB


INTERNSHIP


1967 MEDICAL COLLEGE


GOVT COLLEGE ROHTAK


ROHTAK HIGH SCHOOL


ROHTAK PRIMARY SCHOOL


सिरसा से रोहतक

 सिरसा से रोहतक एक ट्रक में सामान लादकर आये थे।  पिताजी की रोहतक के एग्रीकल्चर फार्म में बतौर फार्म मैनेजर के नियुक्ति हुई थी।  फादर को सुनने भी काफी कम लग गया था और शाम को नींद भी आनी कम हो गई थी।  
सरदार प्रीतम बेलदार  हमारे साथ सिरसा से आया था हमें छोड़ने के लिए।  
उसी दिन शकुंतला बहिन जी भी घर आ गयी थी मिलने के लिए।  
मैनेजर साहब की कोठी के नाम से हमारे मकान को जाना जाता था।  
यह यह हमारे माकन की लोकेशन है 
2 पीपल के पेड़ बड़ी यादगार हैं जो आज भी इतने सालों  के बाद भी उनमें से एक वहां पर है।  
एक बैठक ,एक रसोई , बीच में सहन दाई तरफ दो कमरे और पूर्व की लाइन में 
बाथरूम और एक स्टोर यह था मकान वहां पर।
जाट स्कूल बिलकुल पास ही था वहां प्राइमरी स्कूल में दाखिला लिया।  चौधरी फतेह सिंह दलाल हमारे अध्यापक थे।  जब तीसरी में हुए तो सूरजमुखी बहिन जी भी आ गयी थी।
तख्ती पर सुलेख लिखने का मुकाबला होता था और बहुत बार मैं क्लास में प्रथम आता था। जहाँ अब किशोरी कॉलेज बनाहै वहां लड़कों का हॉस्टल था और अध्यापकों के रहने के मकान भी थे।  
जेबीटी ट्रेनिंग स्कूल में ही हमारा प्राइमरी स्कूल था।  हॉस्टल के साथ एक बड़ा रसोईघर था जहां छात्र भोजन करते थे।  वहीँ पर एक हलवाई की दुकान थी जो मुस्सदी की दुकान के नाम से मशहूर थी।  हॉकी का ग्राउंड , फुटबॉल के दो ग्राउंड और वोली बाल और बास्केट बॉल के ग्राउंड और कबड्डी का ग्राउंड थे।  एक अस्पताल भी था जिसमें एक डाक्टर था और एक पट्टी करने वाला घीस्सा राम जिसकी एक आँख ख़राब थी।  सी आर कॉलेज और जाट कॉलेज अलग अलग से थे।    
पांचवीं तक प्राइमरी स्कूल में पढाई की और छटी क्लास में हाई स्कूल में आ गए।  

सिरसा


सिरसा हम 1954 -1956 के बीच रहे। 
डाक खाने वाली गली में मकान था हमारा। गली के सामने के एरिया में डाक खाना था और उसमें काम करने वाले कर्मचारियों के मकान 
 थे।  एक डाकिया था उसका लड़का हम उम्र था।  उससे दोस्ती थी।  डाक खाने की छत पर चढ़ कर खेलते थे हम। 
 बदलू राम तहसीलदार थे। उनके परिवार से भी सम्पर्क थे।  उनका लड़का कई बार घर भी आया करता था. मकान में एक बैठक थी।  दो कमरे थे।  एक रसोई थी और एक स्टोर था।  बीच में ठीक ठाक सा सहन था। 
गली के पूर्वी छोर पर बड़ा सा खली ग्राउंड था और उस ग्राउंड के पूर्वी छोर पर जेल की लम्बी फैली दीवार नजर आती थी।  
 मैंने मॉडल स्कूल जो 1955  में  खुला था  पहली कक्षा में दाखिला लिया था।  
गली के पश्चमी छोर पर एक सड़क थी जिसे डबवाली वाली सड़क कहते थे।  
बिमला बहिन जी,संतोष बहिन जी , निर्मल बहन और मैं तथा बाउजी और माता जी रहते थे उस घर में।  भैंस वहां भी रखते थे।  और ज्यादा बातें यद् नहीं हैं। 

पुण्डरी

मैं चार पांच साल का था |  बाउजी सुब इंस्पेक्टर थे कृषि विभाग में |  घर किराये पर था।  बहुत बड़ा था।  पहले डयोढ़ी थी।  उसके बाद खुला मैदान था काफी लम्बा चौड़ा।  उसके बाएं तरफ स्टोर था बाथरूम था फिर रसोई थी उसके सामने खाली जगह थी। खाली जगह के दाईं तरफ एक बहुत बड़ा हाल कमरा था।  उससे आगे एक और कमरा था जो मकान मालिक ने अपने पास रखा हुआ था।  उससे आगे एक और बड़ा कमरा था जिसमें भैंस के लिए टुड़ा रखा जाता था।  उससे आगी एक दो कमरे और थे जो मकान मालिक के ही पास थे. मकान मालिक वहां नहीं रहता था | पड़ौस में एक तसीलदार का मकान था।  माता जी , बाउजी , बिमला बहिन जी , संतोष बहनजी , निर्मल बहनजी , मैं और मेरा कजिन भाई प्रेम सिंह वहां रहते थे।  एक भैंस राखी हुई थी। एक बार भैंस गम हो गयी थी।  बहुत ढूँढा फिर रात के दस बजे जाकर पास के इलाके से मिली थी | मुझे स्कूल भेजने की बात कभी कभी होती थी।
   पुण्डरी में मकान वाली गली से पूर्व की और चल कर एक किलोमीटर के लगभग मेन सड़क आ जाती थी जो कैथल को जाती बताते थे।  ठीड़ गली के सामने सड़क के उस पार एक बड़ा तालाब था जहाँ भैंस को पानी पिलाने प्रेम भाई के साथ कई बार जाता था।  एक बार कमला बहिनजी आई हुई थी और वो बीमार हो गयी थी तो उनको कैथल सरकारी अस्पताल में 4 या 5 दिन दाखिल रखा गया था।  उनके बारे जब परिवार वाले बातें करते तो पूरी बात नहीं समझ पाता था लेकिन एक हल्का सा भय जरूर महसूस करता था।
 एक बार मौसी छानकौर  आयी हुई थी।  एक दिन सुबह नाहा कर वह ओढ़नी ओढ़े बड़े कमरे में आ गयी।  मैं भी वहां था।  उनका ओढ़ना गिर गया था कपडे पहनते हुए।  मुझे उस दिन इस बात की जानकारी हुई थी कि महिला और पुरुष में शारीरिक भिन्नता होती है।
    गली में एक मकान खली पड़ा था।  उसमें चिमगादड़ बहुत थे।  वे छतों की कड़ियों से चिपक जाते थे। उनको देखना , पकड़ने की कोशिश करना और साथ ही डरना चलता रहता था।  गली में ही एक सरदारजी का परिवार भी रहता था।
यह तो नहीं पता होता था कि किस बात पर लेकिन बाउजी प्रेम भाई की पिटाई कई बार कर देते थे।  मुझे भी डर लगता था। तीनों बहनें स्कूल पढ़ने जाती थीं।  निर्मल को घर में गुड्डी कह कर बुलाते थे और संतोष को तोशी कहते थे।  बिमला बहनजी को बिमला ही कहते थे।
   एक बार कमला बहनजी ए हुए थे।  उनसे किसी बात से नाराज होकर मैं छत पर चढ़ कर मंडेरे पर चलने लगा था।  बड़ी होशियारी से मुझे निचे उतरा गया था।  कैसे यह तो कमला बहनजी ही बता सकती हैं।